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kaavya manjari

Saturday, August 3, 2013

बैठे बिठाए कुछ ............................

बैठे बिठाए कुछ काम कर लूँ मैं..|
ब्रह्मा की सृष्टि को प्रणाम कर लूँ मैं ||

जुल्मों की दुनिया से खुद को गुमनाम कर लूँ मैं|
सच्चे जहाँ में .........कुछ नाम कर लूँ मैं ||


प्यारे मिलन को अविराम कर लूँ मैं |
गिले-शिकवे को राम-राम कर लूँ मैं ||


अनैतिक करम को विराम कर लूँ मैं |
पुण्य धरम को सलाम कर लूँ मैं ||


बैठे बिठाए कुछ काम कर लूँ मैं..|
खुद को किसी का मुकाम कर लूँ मैं ||..........

Friday, May 31, 2013

हर बार की तरह......................

तसव्वुर - ए-गुमान ने, एक शोहरत अदा कर दी हमें |
हर बार की तरह इस बार भी,एक हसरत अदा कर दी हमें||

शौक भी बच्चों के ,......कब से सिमटते ही रह गये 
महंगाई तो महंगाई है,पर हम सिसकते ही रह गये ||

आजमाइश की तकलीफ़ में,.......हम तड़पते ही रह गये |
एक जख्म की खातिर ,हम मरहम में लिपटते ही रह गये ||

चर्चे तो सन्सद में ,............  हर शाम होते हैं    |
गुफ़्तगू की छांव में ,....  मलहमी पैगाम होते हैं ||

तालियां तो तोतली ,............बार बार होती हैं |
रहनुमाई बोलती ,.........जब नागवार होती हैं ||

Wednesday, May 29, 2013

विनती........

मन्दिर मसजिद और गुरुद्वारों में,
इक विनती करूँ तेरे सब द्वारों पर !
कब से सोया मेरा यार जगा दो..
ये अरज हमारी पूरण कर दो...
उम्मीद किरण को सूरज कर दो..
कथा कहानी में सार जगा दो...
कब से सोया मेरा यार जगा दो
सपने सारे अभी अधूरे...
कितने प्यारे सभी अधूरे..
विकट विथा में अजेय बना दो..
काली रातों मे अभय बना दो..
दिलों दिलों का मेरा यार जगा दो..

सुना तो हमने भी है....
खड़ा किया हर गिरने वालों को तुमने,
कितनों को जीना सिखलाया तुमने,
मध्यम दीपक का तेज बढ़ाया तुमने ,
और कितनो को उठना सिखलाया तुमने,

कब से सोया मेरा यार जगा दो.............
हम सब का यार जगा दो....
मेरी महफ़िल का दिलदार जगा दो.
यही अरज हमारी पूरी कर दो.....

Sunday, May 12, 2013

शक्ति से संचित कर मुझे ,
पाप से वंचित कर मुझे |
जोश से भर दो मुझे ,
न अनीति से हो डर मुझे |

शब्द सागर में वेग दो ,
वक्त का हर तेज दो|
पवन का संवेग दो ,
दीप का हर  तेज़ दो|
कर सकूँ रोशन ज़हाँ ,
लेखनी में वो नूर दो |
बन सकूँ इन्सान मैं,
ऐसा वो कोहिनूर दो |

बैर का प्रतिशोध मैं,
प्रेम से करता चलूँ |
व्यर्थ में जाया नहीं ,
हर पल जिन्दगी का जीता चलूँ |

कठिनाइयों में साहस बढ़े ,
शैल शिखा से पाला पड़े |
मेरे हौसलों को पहचान मिले,
नये आयाम को गढ़ता चलूँ ......

शक्ति से संचित ..............................

Saturday, May 4, 2013

घड़ी की सुइयां देख.............

घड़ी की सुइयां देख-देखकर ...
मोरे मन की छइयां डोल रही हैं.....
रोम -रोम बेचैन हुआ.......जब
पनघट पर गुइयां डोल रही हैं....

सुर तान मिलाए बैठे हैं..........
पइयां के घुंघरू.....
बइयां के घुघरू से ...............
कुछ बोल रहे हैं......

मटकी की छलकन से ...
कितने अधरों की नइया ..
डोल रही है..............
घड़ी की सुइयां देख देख कर ........................

मतवाली उस चाल से..देखो.....
मोरे मन की छइयां डोल रही हैं.....

घड़ी की सुइयां देख देख कर.................

Wednesday, April 24, 2013

अक्षत चन्दन........................

अक्षत चन्दन हल्दी लाए,
जियो  हजारों साल शब्द एक,
इस मन्दी में लाए.........
ध्येय को कर लो प्यार यार तुम ....
लो ये पैगाम हम जल्दी में लाए....

चपला नभ में तड़क रही थी...
सड़क पर बुंदियाँ मचल रही थीं...
कुछ कह रही गमले की चम्पा...
बहुत हो गई गर्मी प्यारी..
अभिनन्दन करने मुंहबोले नेता का,
मौसम देखो कुछ जल्दी में आया..

बीच बजरिया फ़ूट-फ़ूट कर फ़्रूटी रोई...
फ़ेन्टा हम जिसकी बल्दी(बदले) में लाए...
कोका-कोला कायल होय गई.....
बोतल जिसकी नेता सन्ग घायल होय गई......

केक बेचारी क्रीम हुई थी.....
कितने मुखड़ों पर लगी पड़ी थी...
चीनी... शक्कर होय गई बर्फ़ी की....
फ़िर भी..........यार
केचप की तो लगी पड़ी थी........

आखिर पार्टी अपने..................की......
.....   

कर रहा था बात ............................

कर रहा था बात जिस, बिछड़े किरदार की |
रह गई थी बिन बिकी वो चीज,समूचे बाज़ार की|
खेद मुझको तो नहीं ,शोक उनको भी नहीं |
सामने आकर पास पहुँची ,असली इक हकदार की ...|

Wednesday, April 17, 2013

श्रृंगार को.............

श्रृंगार को वो हथियार बना के चल दिए ...
 अंगार को वो यार बना के चल दिए...
 छिपा के असली पहचान अपनी...
 दिल के दरवाजे पर एक प्रहार कर के चल दिए ...
....

Friday, March 22, 2013

होली गीत..................


गाँव हमारो वृन्दावन है |
प्यारी-प्यारी चितवन ,
न्यारी-न्यारी छुअन |
रंग में ढल जाए ,
खिल जाए... सारो उपवन |

गलियां-गलियां गोरी |
मुरली धुन पर नाचे गुजरी....
हो नाचे गुजरी, भर-भर अंजुरी...
होली खेले सखी री... |

रंग-गुलाल उड़ाए सखी री,
वो गाए फ़ाल्गुनी|
झम -झम झूमे गुजरी,
रंग-रंग में छिप जाए,
मोहे रिझाए सजनी |


रिझाए....
गोरी की मटकन ,
कमरिया लचकन,
छहरीली लटकन ,
खो जाए मेरी धड़कन |  
 मैं आऊँ बार-बार मधुवन ...
रंगों में रम जाऊँ ;
अबीर उड़ाऊँ भर भर अंजुरी...
मैं भी खेलूँ होली... संग गुजरी.....


गुजरी(गुजरिया)-नारी फ़ाल्गुनी=होली गीत..................................

Sunday, March 10, 2013

पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ..............................

दूरियों से तो यूँ हम बिखर जाएगे |
पास आओ जरा हम सम्भल  जाएगे ||

तेरी आँखों का अन्जन मैं ही बनूँ |
कुछ पल के लिये तो ठहर जाएगे||

आँसुओं में तेरे हम नजर आएगे |
हर दरद में तेरे हम छलक जाएगे ||

यादों में तेरी हम रचेंगे एक गजल |
गीत में ही सही गुनगना दे गजल||

गीत की इस लहर में हम मचल जाएगे |
पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ||

शबनमीं होठ को हम तरस जाएगे,
प्यास में तेरी हम बरस जाएगे ||

तेज धड़कन में यूँ हम फिसल जाएगे ,
साथ दे दो जरा हम सम्भल जाएगे ||

कब तलक चलेगी ये घड़ी इम्तिहां की,
इन इम्तिहानों से यूँ हम बिखर जाएगे ||

हाशिए पर खड़ी इक जिन्दगी कह रही,
कुछ तो कह दो जरा हम बहल जाएगे ||

पास आओ जरा.......................................

Thursday, March 7, 2013

हम आम हैं भई आम.............................

हम आम हैं भई आम ,
हम तो आम हो गए |
आशिकी के चर्चे ,
सरेआम हो गए |
वक्त के दायरे में ,
कुछ इल्जाम हो गये |
चन्द खुशी में इक दो
यूँ ही जाम हो गए |

हम आम हैं भई आम ,
हम तो आम हो गए |
डूबकर मदहोशी में ,
कुछ ऐसे काम हो गए |
जगह जगह जिरह जिरह में,
मेरे नाम के पर्चे,
खुलेआम हो गए|
हम तो...............

Monday, March 4, 2013

छिप छिप कर.............................

छिप छिप कर वो निकल गये,
छतरी की छहराई में !
मै निपट अकेला खड़ा रहा,
उस छतरी की परछाई में !
वो गुजर गए ,
दिल में उतर गए !
मानसमन की अमराई में ,
दिल की गहराई में !
कुछ छन्द बने ,

कुछ बंद बने !
इस व्याकुलता की लहराई में 1
छतरी भी इतराई है ,
यौवन की अंगड़ाई में ,
हुस्न की अरूणाई में !!
कान्ति मुखों की झलक रही है,
मधुरिम उस परछाई में !
दोहा ,सोरठा और गीत सवैया ,
सब सज गए हैं शहनाई में !
चिन्तन से ही कुछ चाह बढ़ी है,
व्याकुता की लहराई में 1

छिप छिप कर वो....................

Monday, February 25, 2013

.कन्या भ्रूण.....................................

पनाह देकर भी क्यो मुझको, जीवन दे नही पाई |
रखा जो कोख में तुमने ,वो पीड़ा मोह नही पाई |
सजा दी किस कर्म की ,जो दुनिया देख नही पाई |
यह पापों का समन्दर है,लहरे छू हमे पाई...|
डूबना हर किसी को है, तैरना सीख नही पाई |



चाहत थी मेरे दिल मे ,कि एक बचपन सजाना है |
खुदा-ए-बेरूखी तेरी ,या उनका कर्म सताना है |
उगने का शौक बीजों सा ,इक किस्सा पुराना है |
कोंपल कूककर कह्तीं, हमकों क्यूँ फ़साना है |
दुनिया दर्द नही देखी , हमकों यू ही रूलाना है |



महज चाह न थी उनकी ,नसीं बचपन नही हमको |
जमाना पूजता पत्थर , न पायल पाँव पाने को |
झन्कार फ़ीकी है ,वो इक तान सुनाने को .....|
सूना आँचल भी रोया होगा,मेरा स्पर्श पाने को |
क्या ममता मायूस होगी ,सिर्फ़ मातृत्व लुटाने को |



फ़ेकी मै ग्ई जैसे ,सूखी इक लता हूँ मैं |
व्यथा तो इस तरह की है,कोढ़ का घाव हूँ मैं |
दरख्तों को सजाकर भी,उनकी ही व्यथा हूँ मैं |
आसमाँ है मेरे दिल में ,जमीं से दूर भी हूँ मै |



रचाई क्यों ऋचाएं वो ,जिन्हे पूरा न होना है |
कली मै वहीं हूँ जिसे ,कुसुम नाम न पाना है |
मै उनकी ही खिलोना थी,जिनकी आस खिलो न है |
सजाया क्यो गया खाका,जिसे माटी ही होना है |



नही जानती तू वेवश मन की...........
ख्वावों का महल सजाया होगा !
सपनो का साज जूटाया होगा ....
क्यों खामोश रही माँ तेरी ममता ....
कुछ तो तेरे मन मे आया होगा.....!...............

Saturday, February 23, 2013

कितनों को चुभ .........................

कितनों को चुभ कर आया होगा 1
कितनों का दिल भाया होगा !
मर्म छिपे है इसमें भी.............
हर खुशी औरों की में ,
ये मुरझाया होगा;.............

काश ! खबर बो झूठी होती .........................


काश ! खबर बो झूठी होती 1
कोसन(हरियाणा का गांव )में भी होली होती !
मस्त मगन और अलवेली होती 1
अंगने की तू ही एक छबीली होती 1

जन्म दिवस की खुशी खुमारी ,
कितनी खूब रसीली होती 1
माही जन जन में इक पहेली होती 1
काश्! खबर बो झूठी होती 1

नजरों की तू ही इक सलोनी होती 1
क्यों करते सब पुष्प अर्पण !
चम्पा तो तेरी सहेली होती 1
काश ! खबर बो झूठी होती 1

नाम न होता उस क्रन्दन का ,
कोटि कोटि दुआएं जीती होती 1
खुशी लबों पर खेली होती 1
तू मेरी भी प्रिय सहेली होती 1

हम भी इठलाते टेक्नो पर ,
विजयी गाथा गाया करते !
बोरवेल कन्या कह तुझे चिढ़ाया करते 1
काश्! खबर बो झूठी होती...............

..दर्पण सारे....................................

...दर्पण सारे दरक गए हैं !
धूमिल माया में लिपट गए हैं !
हम तो इतने अच्छे थे ,
दिल से कितने सच्चे थे !
पर उन टुकड़ों टुकड़ों में हम
सिमट गए हैं !

Wednesday, February 20, 2013

बात बात में उनका इठलाना अच्छा...............................................

बात बात में उनका इठलाना अच्छा लगता है |
दस बहाने कर उनको झुठलाना अच्छा लगता है ||


भोली सूरत में बच्चों- सा शर्माना अच्छा लगता है |
बिन कारण ही उनसे गोठियाना अच्छा लगता है||


दर्शक दीर्घा में देख उन्हें मेरी पुतली सन्ग ,
मन ही मन उनका हर्षाना अच्छा लगता है||


निदिया रानी रात सुहानी में,
स्वप्निल पल में खो जाना अच्छा लगता है ||


सखी सहेली संग सुन्दर शैली और सहज सुरों में,
लब पर प्रीत सुमन खिल जाना अच्छा लगता है ||


साये शजर में , सखियों की नजर में ,
कल्पित किस्सों में रम जाना अच्छा लगता है |


मेरे उर आखर अक्षर और शब्द पहेली पर ,
उनका यूँ चिढ़  जाना अच्छा लगता है ||


पल दो पल का उनका ये याराना अच्छा लगता है |
खुदगर्ज़ हूँ कि कुछ को मेरा शायराना अच्छा लगता है ||



बात बात में..........................................................

Monday, February 18, 2013

आशियाने ......................

आशियाने खाश बनाए है,
हवाओ के इशारों पर ....
चलती कश्ती के साए हैं ,
लहरों के इशारों पर ......
यह हसरती तूफान क्या करेगा,
जब कोसों मील आए है ...
उसी के खाश इशारों पर ....!  



 छोड़ आए है किनारा
उसी के खाश इशारों पर
या तो लेके कश्ती डूबेंगे
इस हसरती तूफान मे
..................................या बनाएंगे आशियाना
..................................उसी के किनारों पर

Friday, February 15, 2013

चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई.........................

पंखुड़ी गुलाब की वो दरकिनार कर गई |
हार की लड़ी में हमें भी बेशुमार कर गई ||


गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई |
चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई ||


गुजरती रही दिल की गलियों में गोरी ,
गम की लोरी में गुमाकर,मुझे गालिब करार कर गई ||


सालों से सहेजे स्वप्न को हलाल कर गई |
मेरे सपनों को तो होली का गुलाल कर गई ||


अपनी चाहत से चाहत का शिकार कर गई |
हार की कड़ी में हमे भी बेशुमार कर गई ||

Thursday, February 14, 2013

vatan ki.......................

वतन की यही हवा होती ..
बहारों की यही शमां होती..
शमां मे मशगूल दुनियां होती..
स्नेह बन्धन  की जुबां होती..
नेकी पर दुनिया फ़िदा होती..

वतन की यही हवा होती..
हसी भी सुखनुमा होती..
कर्म की यही निशां होती..
भ्रात बन्धुत्व की शमां होती..
प्यार मिलन की छटा होती..

वतन की यही हवा होती ..
नसीहत नम्र की नसीब होती..
इल्म की अनूगूंज रवा होती..
जहमत की जिक्र मे तड़प होती..
मजमून मे मुग्ध मुस्कान मधुर होती..

वतन की यही हवा होती..
मिलन की आस मे प्रभा होती.                                                                                                                       चमकते चेहरे चन्द्र से होते..
दुख दर्द की दवा यही होती..
दुनिया दर्द फ़िदा पर  होती.
झुर्रियों मे भी हसी की कली होती..

वतन की यही हवा होती.................................................

meri vevashi..........................

मेरी एक वेवशी को,
गर कोई उधार ले लेता!
अपने को भी मै ,
कुछ सुधार लेता !
मेरी मौजूदगी रहे,
तेरी यादों के आँचल मे !
खास लम्हें की चाँदनी मै  ,
तुझको बार बार देता !
तेरी जिन्दादिली के आयने मे ,
अपने को मै उभार लेता ....................
मेरी वेवशी को............................
..आन्नद

Saturday, February 9, 2013

auron ki baton me..........................

औरों की बातों में कुछ खैरात समझती है ये दुनियाँ !
अदा करी पंडे ने अज़ान ,मस्जिद मे गीता गान किया !
तो हैरत समझती है ये दुनियाँ !!ईश खुदा तो एक ही नाम ,फिर भी .......
भरी दोपहरी को भी रात समझती है ये दुनियाँ !

Friday, February 8, 2013

तुम्हारी.....................

तुम्हारी शरबती  आँखों में ,
डूबे हम ही ऐसे है  ......
कयामत आँसुओं की है,
गीले हम ही ऐसे है.....
डूबना खासियत मेरी ,
डुबाने का इल्म तो तेरा है...
खता तो हम से होती है ,
वही तो जुल्म मेरा है.......................
तुम्हारी...........................