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kaavya manjari

Monday, February 25, 2013

.कन्या भ्रूण.....................................

पनाह देकर भी क्यो मुझको, जीवन दे नही पाई |
रखा जो कोख में तुमने ,वो पीड़ा मोह नही पाई |
सजा दी किस कर्म की ,जो दुनिया देख नही पाई |
यह पापों का समन्दर है,लहरे छू हमे पाई...|
डूबना हर किसी को है, तैरना सीख नही पाई |



चाहत थी मेरे दिल मे ,कि एक बचपन सजाना है |
खुदा-ए-बेरूखी तेरी ,या उनका कर्म सताना है |
उगने का शौक बीजों सा ,इक किस्सा पुराना है |
कोंपल कूककर कह्तीं, हमकों क्यूँ फ़साना है |
दुनिया दर्द नही देखी , हमकों यू ही रूलाना है |



महज चाह न थी उनकी ,नसीं बचपन नही हमको |
जमाना पूजता पत्थर , न पायल पाँव पाने को |
झन्कार फ़ीकी है ,वो इक तान सुनाने को .....|
सूना आँचल भी रोया होगा,मेरा स्पर्श पाने को |
क्या ममता मायूस होगी ,सिर्फ़ मातृत्व लुटाने को |



फ़ेकी मै ग्ई जैसे ,सूखी इक लता हूँ मैं |
व्यथा तो इस तरह की है,कोढ़ का घाव हूँ मैं |
दरख्तों को सजाकर भी,उनकी ही व्यथा हूँ मैं |
आसमाँ है मेरे दिल में ,जमीं से दूर भी हूँ मै |



रचाई क्यों ऋचाएं वो ,जिन्हे पूरा न होना है |
कली मै वहीं हूँ जिसे ,कुसुम नाम न पाना है |
मै उनकी ही खिलोना थी,जिनकी आस खिलो न है |
सजाया क्यो गया खाका,जिसे माटी ही होना है |



नही जानती तू वेवश मन की...........
ख्वावों का महल सजाया होगा !
सपनो का साज जूटाया होगा ....
क्यों खामोश रही माँ तेरी ममता ....
कुछ तो तेरे मन मे आया होगा.....!...............

Saturday, February 23, 2013

कितनों को चुभ .........................

कितनों को चुभ कर आया होगा 1
कितनों का दिल भाया होगा !
मर्म छिपे है इसमें भी.............
हर खुशी औरों की में ,
ये मुरझाया होगा;.............

काश ! खबर बो झूठी होती .........................


काश ! खबर बो झूठी होती 1
कोसन(हरियाणा का गांव )में भी होली होती !
मस्त मगन और अलवेली होती 1
अंगने की तू ही एक छबीली होती 1

जन्म दिवस की खुशी खुमारी ,
कितनी खूब रसीली होती 1
माही जन जन में इक पहेली होती 1
काश्! खबर बो झूठी होती 1

नजरों की तू ही इक सलोनी होती 1
क्यों करते सब पुष्प अर्पण !
चम्पा तो तेरी सहेली होती 1
काश ! खबर बो झूठी होती 1

नाम न होता उस क्रन्दन का ,
कोटि कोटि दुआएं जीती होती 1
खुशी लबों पर खेली होती 1
तू मेरी भी प्रिय सहेली होती 1

हम भी इठलाते टेक्नो पर ,
विजयी गाथा गाया करते !
बोरवेल कन्या कह तुझे चिढ़ाया करते 1
काश्! खबर बो झूठी होती...............

..दर्पण सारे....................................

...दर्पण सारे दरक गए हैं !
धूमिल माया में लिपट गए हैं !
हम तो इतने अच्छे थे ,
दिल से कितने सच्चे थे !
पर उन टुकड़ों टुकड़ों में हम
सिमट गए हैं !

Wednesday, February 20, 2013

बात बात में उनका इठलाना अच्छा...............................................

बात बात में उनका इठलाना अच्छा लगता है |
दस बहाने कर उनको झुठलाना अच्छा लगता है ||


भोली सूरत में बच्चों- सा शर्माना अच्छा लगता है |
बिन कारण ही उनसे गोठियाना अच्छा लगता है||


दर्शक दीर्घा में देख उन्हें मेरी पुतली सन्ग ,
मन ही मन उनका हर्षाना अच्छा लगता है||


निदिया रानी रात सुहानी में,
स्वप्निल पल में खो जाना अच्छा लगता है ||


सखी सहेली संग सुन्दर शैली और सहज सुरों में,
लब पर प्रीत सुमन खिल जाना अच्छा लगता है ||


साये शजर में , सखियों की नजर में ,
कल्पित किस्सों में रम जाना अच्छा लगता है |


मेरे उर आखर अक्षर और शब्द पहेली पर ,
उनका यूँ चिढ़  जाना अच्छा लगता है ||


पल दो पल का उनका ये याराना अच्छा लगता है |
खुदगर्ज़ हूँ कि कुछ को मेरा शायराना अच्छा लगता है ||



बात बात में..........................................................

Monday, February 18, 2013

आशियाने ......................

आशियाने खाश बनाए है,
हवाओ के इशारों पर ....
चलती कश्ती के साए हैं ,
लहरों के इशारों पर ......
यह हसरती तूफान क्या करेगा,
जब कोसों मील आए है ...
उसी के खाश इशारों पर ....!  



 छोड़ आए है किनारा
उसी के खाश इशारों पर
या तो लेके कश्ती डूबेंगे
इस हसरती तूफान मे
..................................या बनाएंगे आशियाना
..................................उसी के किनारों पर

Friday, February 15, 2013

चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई.........................

पंखुड़ी गुलाब की वो दरकिनार कर गई |
हार की लड़ी में हमें भी बेशुमार कर गई ||


गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई |
चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई ||


गुजरती रही दिल की गलियों में गोरी ,
गम की लोरी में गुमाकर,मुझे गालिब करार कर गई ||


सालों से सहेजे स्वप्न को हलाल कर गई |
मेरे सपनों को तो होली का गुलाल कर गई ||


अपनी चाहत से चाहत का शिकार कर गई |
हार की कड़ी में हमे भी बेशुमार कर गई ||

Thursday, February 14, 2013

vatan ki.......................

वतन की यही हवा होती ..
बहारों की यही शमां होती..
शमां मे मशगूल दुनियां होती..
स्नेह बन्धन  की जुबां होती..
नेकी पर दुनिया फ़िदा होती..

वतन की यही हवा होती..
हसी भी सुखनुमा होती..
कर्म की यही निशां होती..
भ्रात बन्धुत्व की शमां होती..
प्यार मिलन की छटा होती..

वतन की यही हवा होती ..
नसीहत नम्र की नसीब होती..
इल्म की अनूगूंज रवा होती..
जहमत की जिक्र मे तड़प होती..
मजमून मे मुग्ध मुस्कान मधुर होती..

वतन की यही हवा होती..
मिलन की आस मे प्रभा होती.                                                                                                                       चमकते चेहरे चन्द्र से होते..
दुख दर्द की दवा यही होती..
दुनिया दर्द फ़िदा पर  होती.
झुर्रियों मे भी हसी की कली होती..

वतन की यही हवा होती.................................................

meri vevashi..........................

मेरी एक वेवशी को,
गर कोई उधार ले लेता!
अपने को भी मै ,
कुछ सुधार लेता !
मेरी मौजूदगी रहे,
तेरी यादों के आँचल मे !
खास लम्हें की चाँदनी मै  ,
तुझको बार बार देता !
तेरी जिन्दादिली के आयने मे ,
अपने को मै उभार लेता ....................
मेरी वेवशी को............................
..आन्नद

Saturday, February 9, 2013

auron ki baton me..........................

औरों की बातों में कुछ खैरात समझती है ये दुनियाँ !
अदा करी पंडे ने अज़ान ,मस्जिद मे गीता गान किया !
तो हैरत समझती है ये दुनियाँ !!ईश खुदा तो एक ही नाम ,फिर भी .......
भरी दोपहरी को भी रात समझती है ये दुनियाँ !

Friday, February 8, 2013

तुम्हारी.....................

तुम्हारी शरबती  आँखों में ,
डूबे हम ही ऐसे है  ......
कयामत आँसुओं की है,
गीले हम ही ऐसे है.....
डूबना खासियत मेरी ,
डुबाने का इल्म तो तेरा है...
खता तो हम से होती है ,
वही तो जुल्म मेरा है.......................
तुम्हारी...........................