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kaavya manjari

Wednesday, April 24, 2013

अक्षत चन्दन........................

अक्षत चन्दन हल्दी लाए,
जियो  हजारों साल शब्द एक,
इस मन्दी में लाए.........
ध्येय को कर लो प्यार यार तुम ....
लो ये पैगाम हम जल्दी में लाए....

चपला नभ में तड़क रही थी...
सड़क पर बुंदियाँ मचल रही थीं...
कुछ कह रही गमले की चम्पा...
बहुत हो गई गर्मी प्यारी..
अभिनन्दन करने मुंहबोले नेता का,
मौसम देखो कुछ जल्दी में आया..

बीच बजरिया फ़ूट-फ़ूट कर फ़्रूटी रोई...
फ़ेन्टा हम जिसकी बल्दी(बदले) में लाए...
कोका-कोला कायल होय गई.....
बोतल जिसकी नेता सन्ग घायल होय गई......

केक बेचारी क्रीम हुई थी.....
कितने मुखड़ों पर लगी पड़ी थी...
चीनी... शक्कर होय गई बर्फ़ी की....
फ़िर भी..........यार
केचप की तो लगी पड़ी थी........

आखिर पार्टी अपने..................की......
.....   

कर रहा था बात ............................

कर रहा था बात जिस, बिछड़े किरदार की |
रह गई थी बिन बिकी वो चीज,समूचे बाज़ार की|
खेद मुझको तो नहीं ,शोक उनको भी नहीं |
सामने आकर पास पहुँची ,असली इक हकदार की ...|

Wednesday, April 17, 2013

श्रृंगार को.............

श्रृंगार को वो हथियार बना के चल दिए ...
 अंगार को वो यार बना के चल दिए...
 छिपा के असली पहचान अपनी...
 दिल के दरवाजे पर एक प्रहार कर के चल दिए ...
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