*******************लेखनी***************
कभी मीरा कभी राधा कभी घनश्याम लिखती हूं
कभी होठों की शबनम कभी तो ज़ाम लिखती हूं
खुद को मिटाके भी सफ़े को रंगीन कर रही मौला
कभी रजनी कभी ऊषा कभी तो शाम लिखती हूं
**********@आनंद*************************
anandkriti
अन्तर्मन में पल्लवित, स्वर्णिम भावनात्मक और वैचारिक उर्मिल उर्मियों की श्रृंखला को काव्य में ढालकर आपके मन मस्तिष्क को आनन्दमयी करने के लिये प्रस्तुत है जानकीनन्दन आनन्द की यह ''आनन्दकृति''
Thursday, July 13, 2017
लेखनी
Saturday, October 29, 2016
Sunday, March 1, 2015
होली के रंग .............................
होली के रंग में रंगे, जाने माने रुप।
मिटा द्वेष ऐसे मिले,बरसों बिछड़े भूप।।
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घृणा को तज के हुये,प्रियवर के स्वरूप।
और मुरझाए खिल उठे,कुसुमकोश पे धूप।।
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बूँदे ढलकी हँसी की,सूखे अधर अकूत।
धरणी भी हर्षित हुई,जैसे मिले सपूत।।
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बूँदे ढलकी हँसी की,सूखे अधर अकूत।
धरणी भी हर्षित हुई,जैसे मिले सपूत।।
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और अबीर गुलाल से,कर गालों को लाल।
थापों ठुमकों से रचे,थिरक उठे नंदलाल।।Saturday, January 17, 2015
उड़ी पतंग अरमानों की.......................
Friday, November 21, 2014
कोई इस नाचीज़ .................
Monday, September 15, 2014
Tuesday, July 15, 2014
देखते ही......................
देखते ही देखते कुछ लोग ग़ज़ल हो रहे थे
किसी से गुफ़्तगू के दरमियां वो फ़जल हो रहे थे
हमे तो शौक था उनको झांक कर देखने का
तजुर्बे की सुधा से होंठ उनके सजल हो रहे थे
...................................................................
गुस्ताखियां मेरी आज किसी के हाथ लग गई
होशियारी की तहों में सिलबटों की बाढ़ लग गई
बड़े जोश में निकला था उनका सामना करने को मैं
शालीनता के तेज से मेरी शैतानियों की तो बाट लग गई
.........................................................................
पाकीजा मुहब्बत की इक किरदार तुम बन जाओ
प्रेम पूज्य गंगा की इक पतवार तुम बन जाओ
पग पग पे भरोसे की.......... नैया जो डूबती है
मझधार में कस्ती की खेवनहार तुम बन जाओ
....................................................................
हो गई शरारत संभलते संभलते...
खो गया ख्वाब में सोचते सोचते...
इस तरह जमाने से कहना न था..
लफ़्ज जाहिर हुये रोकते रोकते.....
........................................................
मेरी उम्मीदों के हर्फ़ो से बनती एक कहानी हो
चंदा के रूह में बसती एक आस पुरानी हो
बरखा की बूँदों से चलती अविरल एक रवानी हो
सुकूं-चैन की चोरी की तुम एक चोर पुरानी हो
किसी से गुफ़्तगू के दरमियां वो फ़जल हो रहे थे
हमे तो शौक था उनको झांक कर देखने का
तजुर्बे की सुधा से होंठ उनके सजल हो रहे थे
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गुस्ताखियां मेरी आज किसी के हाथ लग गई
होशियारी की तहों में सिलबटों की बाढ़ लग गई
बड़े जोश में निकला था उनका सामना करने को मैं
शालीनता के तेज से मेरी शैतानियों की तो बाट लग गई
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पाकीजा मुहब्बत की इक किरदार तुम बन जाओ
प्रेम पूज्य गंगा की इक पतवार तुम बन जाओ
पग पग पे भरोसे की.......... नैया जो डूबती है
मझधार में कस्ती की खेवनहार तुम बन जाओ
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हो गई शरारत संभलते संभलते...
खो गया ख्वाब में सोचते सोचते...
इस तरह जमाने से कहना न था..
लफ़्ज जाहिर हुये रोकते रोकते.....
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मेरी उम्मीदों के हर्फ़ो से बनती एक कहानी हो
चंदा के रूह में बसती एक आस पुरानी हो
बरखा की बूँदों से चलती अविरल एक रवानी हो
सुकूं-चैन की चोरी की तुम एक चोर पुरानी हो
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