अन्तर्मन में पल्लवित, स्वर्णिम भावनात्मक और वैचारिक उर्मिल उर्मियों की श्रृंखला को काव्य में ढालकर आपके मन मस्तिष्क को आनन्दमयी करने के लिये प्रस्तुत है जानकीनन्दन आनन्द की यह ''आनन्दकृति''
******************************************* चलो......फिर से दिवाली का इक जश्न मनाना है गिले शिकवे के तिमिर से.....मुक्त मन बनाना है अमावस की निशा में तो....हर ज्योति निराली है भव्य दीपामालाओं से अपना गुलशन सजाना है @आनन्द *******************************************