अन्तर्मन में पल्लवित, स्वर्णिम भावनात्मक और वैचारिक उर्मिल उर्मियों की श्रृंखला को काव्य में ढालकर आपके मन मस्तिष्क को आनन्दमयी करने के लिये प्रस्तुत है जानकीनन्दन आनन्द की यह ''आनन्दकृति''
*******************लेखनी***************
कभी मीरा कभी राधा कभी घनश्याम लिखती हूं
कभी होठों की शबनम कभी तो ज़ाम लिखती हूं
खुद को मिटाके भी सफ़े को रंगीन कर रही मौला
कभी रजनी कभी ऊषा कभी तो शाम लिखती हूं
**********@आनंद*************************
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