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kaavya manjari

Monday, March 4, 2013

छिप छिप कर.............................

छिप छिप कर वो निकल गये,
छतरी की छहराई में !
मै निपट अकेला खड़ा रहा,
उस छतरी की परछाई में !
वो गुजर गए ,
दिल में उतर गए !
मानसमन की अमराई में ,
दिल की गहराई में !
कुछ छन्द बने ,

कुछ बंद बने !
इस व्याकुलता की लहराई में 1
छतरी भी इतराई है ,
यौवन की अंगड़ाई में ,
हुस्न की अरूणाई में !!
कान्ति मुखों की झलक रही है,
मधुरिम उस परछाई में !
दोहा ,सोरठा और गीत सवैया ,
सब सज गए हैं शहनाई में !
चिन्तन से ही कुछ चाह बढ़ी है,
व्याकुता की लहराई में 1

छिप छिप कर वो....................

3 comments:

  1. kafi accha hai.......

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  2. बहुत सुन्दर . अच्छा लगा पढ़कर.

    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)

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  3. धन्यवाद भैया जी..................................

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