बेदर्द जमाने में ,खत-ओ-पैगाम से डरते हैं ||1
दीदार में दिये के हम, पतंगा-से जलते हैं |
रातों को आहट में, हम जुगनू-से जलते हैं ||
रजनी के आँचल में, आहें तो भरते हैं |
करवट में उड़ाएं नींद, उन यादों से डरते हैं||
मगरूर हैं अदाओं में, हमें जो इंकार करते हैं|
हरे जख्म करे हर बार, उसी मुस्कान से डरते हैं||
चुपके से आओ यार इल्तिजा तेरे नाम करते हैं|
खामोश फिज़ाओं में अब हम कोहराम से डरते हैं|
''आनन्द'' मिला दिन-रात, जिसे विसाले -नाम करते हैं|
दानिस्ता नैन किए दो चार, मगर अब अन्जाम से डरते हैं||
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कहीं ठंड आप से घुटना न टिकवा दे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
तहे-दिल से आभार.....हमारे ब्लॉग पर आने के लिए...
ReplyDeleteकोटि-कोटि प्रणाम ..
आपका
आनंद
वाह ...बेहतरीन
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब.
ReplyDeleteलिखते रहिये!
badiya
ReplyDeletebahut achha likha hai
ReplyDeleteshubhkamnayen
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteअति सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteBahu hi pyari ghazal.
ReplyDeleteYou may also like: Whatsapp plus vs gbwhatsapp & Games like stick war legacy