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kaavya manjari

Friday, February 15, 2013

चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई.........................

पंखुड़ी गुलाब की वो दरकिनार कर गई |
हार की लड़ी में हमें भी बेशुमार कर गई ||


गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई |
चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई ||


गुजरती रही दिल की गलियों में गोरी ,
गम की लोरी में गुमाकर,मुझे गालिब करार कर गई ||


सालों से सहेजे स्वप्न को हलाल कर गई |
मेरे सपनों को तो होली का गुलाल कर गई ||


अपनी चाहत से चाहत का शिकार कर गई |
हार की कड़ी में हमे भी बेशुमार कर गई ||

6 comments:

  1. गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई !
    चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई !

    बस यही एक शेर सब कह गया.......
    बेहतरीन

    ReplyDelete
  2. गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई !
    चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई !

    बस यही एक शेर सब कह गया.......
    बेहतरीन

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