पंखुड़ी गुलाब की वो दरकिनार कर गई |
हार की लड़ी में हमें भी बेशुमार कर गई ||
गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई |
चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई ||
गुजरती रही दिल की गलियों में गोरी ,
गम की लोरी में गुमाकर,मुझे गालिब करार कर गई ||
सालों से सहेजे स्वप्न को हलाल कर गई |
मेरे सपनों को तो होली का गुलाल कर गई ||
अपनी चाहत से चाहत का शिकार कर गई |
हार की कड़ी में हमे भी बेशुमार कर गई ||
हार की लड़ी में हमें भी बेशुमार कर गई ||
गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई |
चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई ||
गुजरती रही दिल की गलियों में गोरी ,
गम की लोरी में गुमाकर,मुझे गालिब करार कर गई ||
सालों से सहेजे स्वप्न को हलाल कर गई |
मेरे सपनों को तो होली का गुलाल कर गई ||
अपनी चाहत से चाहत का शिकार कर गई |
हार की कड़ी में हमे भी बेशुमार कर गई ||
wah !! bahut khoob
ReplyDeletesach kaha hai
ReplyDeleteKya baat Kahi
ReplyDeleteWah!!! Cong8ts nice.....
ReplyDeleteगिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई !
ReplyDeleteचाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई !
बस यही एक शेर सब कह गया.......
बेहतरीन
गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई !
ReplyDeleteचाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई !
बस यही एक शेर सब कह गया.......
बेहतरीन