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kaavya manjari

Saturday, May 4, 2013

घड़ी की सुइयां देख.............

घड़ी की सुइयां देख-देखकर ...
मोरे मन की छइयां डोल रही हैं.....
रोम -रोम बेचैन हुआ.......जब
पनघट पर गुइयां डोल रही हैं....

सुर तान मिलाए बैठे हैं..........
पइयां के घुंघरू.....
बइयां के घुघरू से ...............
कुछ बोल रहे हैं......

मटकी की छलकन से ...
कितने अधरों की नइया ..
डोल रही है..............
घड़ी की सुइयां देख देख कर ........................

मतवाली उस चाल से..देखो.....
मोरे मन की छइयां डोल रही हैं.....

घड़ी की सुइयां देख देख कर.................

2 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना....!! घडी की सुइयां देख देख कर .....आभार .

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  2. बहुत ही सुन्‍दर

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