चुनावी चौराहों और चौपालों पर
चैतन्य वेग का रेला है
दूर-दराज सूनसानों में भी
कैसा जमघट कैसा मेला है
वादों में लहरा के चलते हैं
कभी खुद औहदों पर इतराने वाले
आरोपों और प्रत्यारोपों का
रोचक खेल दिखाने वाले
गली-गली और बस्ती-बस्ती
शहर की सकरी गलियों
सड़क किनारे झोपड़ पट्टी में
भी दिख जाते हैं..............
कभी-कभी कहीं-कहीं
ये दिखने वाले....................
आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
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आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
बहुत खूब !
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