होली के रंग में रंगे, जाने माने रुप।
मिटा द्वेष ऐसे मिले,बरसों बिछड़े भूप।।
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घृणा को तज के हुये,प्रियवर के स्वरूप।
और मुरझाए खिल उठे,कुसुमकोश पे धूप।।
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बूँदे ढलकी हँसी की,सूखे अधर अकूत।
धरणी भी हर्षित हुई,जैसे मिले सपूत।।
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बूँदे ढलकी हँसी की,सूखे अधर अकूत।
धरणी भी हर्षित हुई,जैसे मिले सपूत।।
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और अबीर गुलाल से,कर गालों को लाल।
थापों ठुमकों से रचे,थिरक उठे नंदलाल।।
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर भी आप जैसे गुणीजनो क मार्गदर्श्न प्रार्थनीय है